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Saturday, December 25, 2010

'द' .... फ़ार दारू .... -दिनेश वर्मा

गाँव का मास्टर स्कूल से आता है , थकान मिटाता है
और पड़ोसी को उसके सवालों के हल बताता है -
'द' ......फ़ार ........दारू .......
साहब दौरे पर जाते हैं, ..... या दौरे से वापस आते हैं 
चपरासी मेज़ पर .....रख जाता है , जाते-जाते बता जाता है -
सर ! 'द'.......... फ़ार ......दारू .......
छोटे बाबू शाम को आफ़िस का हिसाब मिलाता है 
कैश में कुछ रूपये ज्यादा पाता है
तो बड़े बाबू के सामने कनखियों से इशारे कर 
मस्ती में गुनगुनाता है ......'द' .........फ़ार........दारू .....
नेता ठेकेदार से मिलता है 
दोनों का दिल खिलता है 
चमचे जोर से चिल्लाते हैं ...'द' ....फ़ार ....दारू......
कोई फ़ाइल चपरासी के हाथ हो
और फ़ाइल वाला चपरासी के साथ हो 
तो चपरासी सहानुभूति जताता है -
सर ! काम करा दूं .....तो ....'द' ...फ़ार ....दारू ....?
फिर भी ........मुझे 
किसी से न कोई शिकवा है ......न कोई गिला 
सच पूछो ....तो अब नहीं रह गया हूँ मैं भी कोई दूध का धुला 
और मैं भी गुनगुनाने लगा हूँ अब ......'द' .....फ़ार .....दारू......
मैं जब-जब एम्.ए., बी.एड. शिक्षक के पे-डाटा पर 
सरपंच  का अंगूठा लगवाता  हूँ 
और किसी पीएच. डी. वाले को महज़ एक शिक्षाकर्मी पाता हूँ 
हाँ-हाँ तब मैं भी गाता हूँ ......'द' ....फ़ार....दारू....
जब मैं किसी माननीय  नेता जी को छत्तीसगढ़ की स्पेलिंग बताता हूँ ...
और चपरासी का "होंडा" साहब के लिए मांग कर लाता हूँ  
या जब-जब योग्यता में राजनीति का ग्रहण पाता हूँ
और नौजवानों को संविदा की सूली पे लटका पाता हूँ 
तब भी मुझे एक ही बात याद आती है .......'द' .......फ़ार....दारू...... 
पर कुछ बातें तो इतनी घिनौनी हैं 
कि उन्हें बताने के लिए भाषा भी बौनी लगती है 
इसलिए जब-जब दर्द से तिलमिलाता हूँ 
तब-तब अपना दर्द मिटाता हूँ 
जिसका सस्ता सा उपाय है ..'द' ....फ़ार....दारू...
'द' ....फ़ार....दारू....
      

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