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Thursday, January 20, 2011

कलम - रोशन वर्मा

हाइब्रिड और कलम का ज़माना है. ऐसे-ऐसे बीज आ गए हैं सब्जियों के ज़ो सिर्फ एक बार ही उगते हैं. उनसे निकले बीज किसान के लिए बेकार हैं ...हर बार बीजों के लिए बाज़ार पर निर्भरता बढ़ती जा रही है....किसान का मौलिक हक और बीजों की स्वाभाविक प्रकृति उनसे बलात  छीन ली गयी है और महिमामंडित हो रहे हैं नपुंसक बीज .....प्रतिभा थोपने का यह दौर ख़त्म भी हो पायेगा कभी .....?  कई अर्थों  की ओर संकेत करती  रोशन वर्मा की कविता ...- कौशलेन्द्र  

वाह !
चटख रंग ....
और आकार भी बड़ा,
बरसों से खिल रहा है 
और शान से खड़ा है.
चलन इसी का है अब ...यही बिकता है 
हर जगह .......
गमलों और बंगलों में खिलता है,
खाद-पानी भी .....सिर्फ उसे ही 
शेष तो खरपतवार हैं,
धूप  पर भी उसी  का हक 
और तो बेघर-बार हैं.
..........हाँ ! जड़ों से पीक न फूटे  
मुस्तैदी से यह देखते रहना होगा 
जड़ें ज्य़ादा बढ़ जाएँ 
तो उन्हें भी काटते रहना होगा
जड़ें  मज़बूत हो गईं अगर 
तो फिर ....वही 
देशी का साम्राज्य हो जाएगा 
छोटा फूल, हल्का रंग ....मगर गज़ब की ख़ुश्बू !
अरे छोडिये न ! ख़ुश्बू भी कहीं दिखाई देती है भला ?
दिखता है .....बड़ा सा आकार और चटख रंग  
ख़ुश्बू नहीं है तो क्या .....बाज़ार तो है 
देखो ... लोगों की सोच कहीं बदल न जाय 
अभी हमें बहुत "विकास" ज़ो करना है 
हर जगह कलम और सिर्फ कलम ही लगाना है.
कोई भी क्रान्ति  हो  
इससे पहले ही सब कुछ समेट लेना है .  

Tuesday, January 11, 2011

कितना हक -रोशन वर्मा

माँ ! वे आये थे   
..........................बोल कर गए हैं ......
कि ये सब उनका है ........
ये पेड़, ये घोंसला.....
ये तिनके और फूस...
ये दाना, ये चुग्गा .....
ये ज़मीं, ये आसमां ......
ये मिट्टी, ये पानी ...
ये हवा, ये ख़ुश्बू .....
सारे खेत और खलिहान ....
ये नदी और पहाड़ .....
घाटियाँ और पाट ....
ये जंगल और झाड़ियाँ .....
ये कपडे ,ये लत्ते ....
घर-द्वार और बर्तन ....
ये रास्ता, ये मैदान .....
समय- बिहान......
ये जीवन और सांस .....
सोना और सपने .....
आशा और विश्वास 
......................
और माँ ! उसने यह भी कहा था ....
कि उसने खरीद लिया है 
सरकार से ये इलाका ...
.......और.... हमारा सब कुछ .....
और शुरू होगा कोई प्रोजेक्ट ....
शायद ...आज ...या फिर .....कल से ही . 
सच माँ ! क्या अब कुछ भी नहीं रहा हमारा ?
और सरकार सब कुछ बेच सकती है क्या ......?
तो मेरी शर्ट भी बिकवा दो ना   ...
देखो तो कितनी पुरानी हो गई है !