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Thursday, February 17, 2011

बेन्दा - रोशन वर्मा

जिसे उत्तर प्रदेश में बांदा या बन्दा कहते हैं उसे ही छतीसगढ़ में बेंदा के नाम से जाना जाता है .........बड़े वृक्षों पर पलने वाला यह एक परजीवी पौधा है ..........जैसे विशाल जन समुदाय के खून से अपना पोषण प्राप्त करने वाले कुछ मुट्ठी भर परजीवी लोग........
रोशन वर्मा से एक महुए की हालत देखी न गयी .......सूखता महुआ और खिलखिलाता बेंदा ....उन्हें अन्दर तक झकझोर गया .....- कौशलेन्द्र. 


बेन्दा खुश है 
खिल रहा है 
फल-फूल रहा है 
महुआ की शाखों पर 
कहीं आम ...बिही...
कहीं अनार की डालों पर 

महुए की पत्तियाँ 
सिकुड़ गयी हैं .....
सूख रही हैं .........
डालियाँ जकड गयी हैं .........
उसकी शाखाओं पर फोड़े उग आये हैं. 
बेंदा ......
अधिकार कर चुका है 
उसकी रक्त वाहिनी पर
बेंदा ..
कदाचित इसीलिये 
पूजन सामग्री भी है 
लोग तलाशते हैं इसे 
समृद्धि की लालसा में.
उधर महुआ 
सूख रहा है 
क्योंकि महुए पर बेंदा फ़ैल रहा है 
और महुए पर ही क्यों ....
अब तो आसपास के पेड़ों पर भी ...
लगता है 
एक दिन 
पेड़ों का रक्त चूसते 
परजीवी बेंदे ही होंगे 
शासक 
इन जंगलों के .   

Friday, February 04, 2011

क्या गज़ब का सफ़र है -अंकिता दुबे

ज़िंदगी भी क्या-क्या ग़ुल खिलाती है / पल में हंसाती पल में रुलाती है / कभी झरे हैं फूल तो चुनने वाला ही नहीं / कभी खड़े हैं इंतज़ार में तो फूल ही नहीं ........आज प्रस्तुत है एक नवोदित रचनाकार अंकिता दुबे की एक ग़ज़ल       - कौशलेन्द्र. 



ज़िंदगी की राह में कभी खुशियाँ तो कभी हादसा यहाँ 
कभी तन्हाई मिली तो सजी महफ़िल भी यहाँ .

एक राह में सुकूं दिल को तो एक में मिलती है सज़ा
कभी खैरियत-ओ-चैन तो कभी बेबसी यहाँ.

हर सुबह देखे हैं ख़्वाब मेरे अरमानों ने नए
कभी छाँव में चले तो कभी झुलसे हैं धूप में यहाँ .

कई रिश्ते जाने-अनजाने ऐसे भी मिले हमें 
छोड़ कर कुछ चलते बने कुछ अभी तक ठहरे हैं यहाँ .

क्या गज़ब का  है सफ़र इस ज़िंदगी का
कभी आरज़ू तो कभी इम्तेहां भी यहाँ .

जी लेते हैं कुछ यूँ ही रख के दुश्मनी ज़ज्बात से
मिलती है हिकारत तो कभी रहमत भी यहाँ 


कृपया !अपनी बेहतरीन और मूल्यवान टिप्पणियों से मेरे उत्साह वर्धन के
 लिए तशरीफ लायें ....मेरे अपने ब्लॉग पर ....पता है -
Quest 4 the life   

Tuesday, February 01, 2011

कमीज़ - roshan varma

एक ही ख्वाहिश ......कितनी जुदा ! 
किसी की ज़रूरत , किसी की अदा .   - कौशलेन्द्र 

१-
माँ ! मुझे कमीज़ दिला दो न! 
कब तक काटूंगा यूँ ही .....बिना कमीज़ 
ठण्ड बहुत लगती है माँ !

२-
माँ ! मुझे नयी कमीज़ सिला दोगी ?
अब तो पुआल से भी ठण्ड नहीं जाती 
पैबंद उखड गए हैं ...कथरी सी हो गयी है
और फिर सीने ..........को भी तो जगह नहीं बची माँ ! 

३-
माँ ! ....एक और कमीज़ प्लीज़ !
यह एक ही है 
जब मैली हो जाती है 
तो धोकर सुखाने में समय लगता है
और देर हो जाती है स्कूल की .

४-
मम्मी ! दीवाली पर नहीं 
तो बर्थ-डे पर ही सही  
नई शर्ट ले देना मुझे 
दोस्त चिढाते हैं ...
क्या कोई गिफ्ट नहीं  ?

५-
मम्मा ! 
मैं नहीं पहनूंगा इसे 
यह भी कोई शर्ट है 
क्या मैं इसी के लायक हूँ ?
ये शार्ट नहीं है 
समझा करो 
पैटर्न फैशन !