हम मध्याह्न भोजन बाँट रहे हैं
जनता की पीढ़ियाँ तैयार कर रहे हैं
पैदा होते ही
उन्हें कटोरे की जगह
थाली थमा रहे हैं
आखिर हमारी पीढियां
हुकूमत करेंगी किस पर ! .... -डॉक्टर कौशलेन्द्र
पूरी तरह ......
हटा दो परीक्षाएं
किताबें और कापियां
कलम और साधना.......
- ये सब,
मनोविज्ञान कहता है कि.....
तनाव पैदा करती हैं .
हमारे नौनिहाल
उनका कोमल है तन-मन
बुद्धि विकास
आज़ादी से हो ..
वे कमजोर हैं
तन-मन और हाजिरी में
उन्हें भोजन दो
तन के लिए
वे कतार में खड़े हैं
थाली-कटोरी लेकर
अभ्यस्त हो चले हैं.
उन्हें खुला आनंद दो
मन के लिए
वे खाली वक़्त पर
आये हैं / मज़बूरी में
हल्का-फुल्का माहौल
तीव्र बुद्धि विकास के लिए ज़रूरी है.
स्थायी ज्ञान और समझ के लिए
कडा परिश्रम क्यों ?
स्मरण /प्रत्यास्मरण / अभ्यास क्यों ?
श्रेष्ठता का संघर्ष क्यों ?
जीवन में स्पर्धा कहाँ है ?
आगे कोई तनाव नहीं
तो श्रम और साधना क्यों ?
विद्या की आराधना क्यों ?
जीवन आनंदमय है
मधुमय ,सरस और रंगीन
जीवन परीक्षा नहीं
तो आगे असफलता कैसी
मधुकर !
यहाँ कोई परीक्षा नहीं
कोई अड़चन नहीं
तुम्हारा अधिकार है
यहाँ उत्तीर्ण होना
और आगे
मृदुल, कोमल, सुखद जीवन है
तुम तो भोजन करो.