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Monday, May 09, 2011

प्रणाली .....रोशन वर्मा


हम मध्याह्न भोजन बाँट रहे हैं 
जनता की पीढ़ियाँ तैयार कर रहे हैं   
पैदा होते ही  
उन्हें कटोरे की जगह  
थाली थमा रहे हैं  
आखिर हमारी पीढियां  
हुकूमत करेंगी किस पर ! ....        -डॉक्टर कौशलेन्द्र 

पूरी तरह ......
हटा दो परीक्षाएं 
किताबें और कापियां 
कलम और साधना....... 
- ये सब, 
मनोविज्ञान कहता है कि.....  
तनाव पैदा करती हैं .
हमारे नौनिहाल 
उनका कोमल है तन-मन
बुद्धि विकास
आज़ादी से हो ..
वे कमजोर हैं 
तन-मन और हाजिरी में 
उन्हें भोजन दो 
तन के लिए 
वे कतार में खड़े हैं 
थाली-कटोरी लेकर  
अभ्यस्त हो चले हैं.
उन्हें खुला आनंद दो 
मन के लिए 
वे खाली वक़्त पर 
आये हैं / मज़बूरी में 
हल्का-फुल्का माहौल 
तीव्र बुद्धि विकास के लिए ज़रूरी है.

स्थायी ज्ञान और समझ के लिए 
कडा परिश्रम क्यों  ?
स्मरण /प्रत्यास्मरण / अभ्यास क्यों ?
श्रेष्ठता का संघर्ष क्यों ?
जीवन में स्पर्धा कहाँ है ?
आगे कोई तनाव नहीं  
तो श्रम और साधना क्यों ?
विद्या की आराधना क्यों ?
जीवन आनंदमय है 
मधुमय ,सरस और रंगीन  
जीवन परीक्षा नहीं 
तो आगे असफलता कैसी 
मधुकर ! 
यहाँ कोई परीक्षा नहीं 
कोई अड़चन नहीं  
तुम्हारा अधिकार है 
यहाँ उत्तीर्ण होना  
और आगे 
मृदुल, कोमल, सुखद जीवन है 
तुम तो भोजन करो.