अपने-अपने चाँद ।
अनंत आकाश में स्थित पिण्डों में मनुष्य को यदि किसी ने सर्वाधिक आकर्षित किया है तो वह है चाँद।
मालिनी गौतम गुजरात के एक महाविद्यालय में अंग्रेज़ी पढ़ाती हैं और हिन्दी की अनुरागी हैं। चाँद के साथ चलने-खेलने और बातें करने का मन किसका नहीं होता ! मालिनी जी की लेखनी ने चाँद को जिस तरह स्पर्श किया है वह प्रस्तुत है आप सबके समक्ष ज्यों का त्यों .....
चाँद के साथ-1
कल रात वह
फिर चला आया
चाँद की उँगली
पकड़े चुपचाप
खिड़की के रास्ते,
मैनें आँखें तरेर
कर
चाँद से पूछा
क्यों ले आते हो
तुम इसे बार-बार
अपने साथ...?
क्या मैनें तुमसे
कहा कभी
कि मुझे अब भी आती
है
इसकी याद...?
चादँ हंसकर बोला
कौन कमबख्त इसे
लाना चाहता है,
पर जब भी अकेला
आता हूँ
मिलती है मुझे
दर्द से तड़पती,
तन्हा, आधी-अधूरी,
बिखरी-बिखरी सी इक
नज्म....
इसके आने से ही
सही
कभी तो पूरी होगी
यह नज्म
इसी कशिश में
खुद भी खिंचा चला
आता हूँ
और इस नामुराद को
भी
साथ ले आता
हूँ....
2
आधी रात को
किसी ने हौले से
दस्तक दी..
अधखुली आँखों ने
देखा
नीली सी रौशनी
और गालों पर खंजन
लिये
चाँद टिका हुआ था
खिड़की में,
बोला.....
कब तक यूँ ही सोती
रहोगी..?
थाम लो मुझे
मैं ले जाऊँगा
तुम्हें
बादलों के उस पार….
सदियों से खामोश
उस देह ने
इतना सुनते ही
करवट बदल ली
तभी अँधेरा बोल
उठा
किससे कर रहे हो
बातें..?
लाशें भी क्या कभी
बोलती हैं...?
तीन
बचपन में झूले पर बिठाकर
घी-शक्कर चुपड़ी रोटी खिलाते-खिलाते
माँ हमेशा कहतीं
जल्दी-जल्दी खा लो
चंदा मामा ने
भेजी है तुम्हारे लिये......
बचपन का वह चाँद
यौवन की दहलीज पर आते-आते
न जाने कब बन गया
मेरा हमदम...मेरा राजदार....
मेरे एकांत का साथी,
न जाने कितनी ही रातों तक
मैं उसे एकटक देख कर जागती रही
और न जाने कितनी ही रातों तक
वह मुझे बहला-फुसला कर
मुझ पर नींद की चादर उढ़ाता रहा....
काली अमावसी रातों में
एक बार उसका इंतजार करते-करते
मैनें देखा फुटपाथ पर
हाथ में थालियाँ लिये
फटेहाल...उदास..पीली सी मुस्कान वाले बच्चों को,
मैनें धीरे से पूछा
क्या तुम भी मेरी तरह कर रहे हो
चाँद का इंतजार...?
वे हँसकर बोले ....हाँ..
हमारे लिये तो
इन थालियों में रखी
गोल-गोल रोटियाँ ही चाँद हैं
बस उसी का इंतजार कर रहे हैं...
तभी पास ही झोंपड़ी में रहती
हर रोज अपने शराबी पति
से मार खाती.....कम्मो
ठोड़ी पर हाथ टिकाये
उकड़ु सी बैठी दिखी
मैने कहा...कम्मो..
क्या चाँद निकलने का इंतजार है तुम्हे..?
वह बोली बीबीजी मेरा मरद
अभी तक वापस नहीं आया,
भगवान करे ठीक-ठाक हो,
उसी का इंतजार कर रही हूँ..
मेरे लिये तो मेरे माथे पर चमकती
यह बड़ी सी लाल बिन्दी ही
मेरा चाँद है....
नजदीक ही
चौकीदार की जवान बेटी लाजो
कुछ गुनगुनाते-गुनगुनाते
घर से बाहर निकली
कुछ देर अँधेरे में ताकती रही
फिर मुस्करा कर आगे बढ़ गई
मैने कहा...क्या चाँद ढ़ूढ़ रही हो..?
वह ठठाकर हँस पड़ी
अपने अलसाये से बदन को
मरोड़कर बोली
मैं क्यों करूँ चाँद का इंतजार
खाली-पीली टाईम वेस्ट होता है
और मिलता कुछ भी नहीं
ऐसे तो न जाने कितने ही चाँद
मेरे आगे-पीछे घूमते रहते हैं..
मैं थके तन
और उदास मन को लिये
चल दी नजदीक ही
एक खेत की ओर
किसान की लड़की साँवली
धान के खेतों की
रखवाली कर रही थी
तभी चाँद निकल आया
मैनें आँखों में प्यार भरकर कहा
देखो कितना प्यारा चाँद है
साँवली बोली..
ऊपर देखने की फुरसत किसे है...
मेरे धान के हर क्यारे में
एक चाँद चमक रहा है..
मैं हतप्रभ ठगी सी
खड़ी रह गई
सोचा यह भी अजीब है
यहाँ तो किसी को
पड़ी ही नहीं है चाँद की,
एक मैं ही दिवानी हुई पड़ी हूँ
बेकार ही जलती रही
इतने दिनो तक
कि मेरे चाँद को
किसी की नजर न लग जाये.....