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Friday, December 24, 2010

दिनेश वर्मा की दो कवितायें

कांकेर जिले की चारामा तहसील में उच्च श्रेणी शिक्षक के पद पर एक शाला में अपनी सेवायें दे रहे दिनेश जी पुरातत्व प्रलेखन जुड़े हुए हैं ....इनका शेष परिचय इनकी रचनाओं से समय-समय पर आपको मिलता रहेगा. प्रस्तुत हैं यहाँ उनकी दो रचनाएँ -
"एक" 
वेदना
किसी ग्रामीण महिला का
जंगल में प्रसव होना ........ 
कविता है.
उसकी पूरी देह .......
कविता है.
अन्न के कुछ दाने जुगाड़ कर
उसका एक दिन और जीवन जी लेना 
कविता है .
'जानवर' के कारण बच्चों का स्कूल न जाना 
कविता है.
इलाज़ के अभाव में 
और झाड-फूंक के प्रभाव में 
कम उम्र में बुधरू का मर जाना 
कविता है.
बुधियारिन का कम कपड़ों के कारण
बलात्कार हो जाना
कविता है.
और इसी गाँव का नशे में धुत्त मास्टर
कविता  है.
सबसे बड़ी कविता है 
इक्कीसवीं सदी में 
इन सबका निरक्षर होना. 
 " दो "
 आदिवासी 
१- 
इनका जीवन 
बारिस की नन्हीं बूँद है 
पटर-पटर, 
संरक्षण के अभाव में
जल्दी नष्ट हो जाने वाले.
२-
इनका जीवन
पगडंडी है
कतार में चलते-चलते
उम्र बीत जाती है 
सड़क का अहसास तक नहीं.
३-
इनका जीव
नदी है 
लोग दोहन करते हैं
तृप्त होते हैं 
और वे प्रवाहमान हैं .....
टेढ़े-मेढ़े गिरते-पड़ते.
४-
इनका जीवन
समूह होता है
हाट-बाज़ार में 
रहते आधी उम्र तक
फिर भी भावनात्मक रिश्तों से दूर.
५-
इनका जीवन 
दत्तक पुत्र है 
ज़ो पलते-पलते सरकारी नीतियों में 
हो  जाता है अंत में 
सौदागरों के हवाले.



1 comment:

  1. बस्तर की धरती की आवाज़ जब इन स्वरों में पुकार भरती है तो एक तीखी चुभन के साथ उद्वेलित करती करुणा के द्वंद्व से हृदय आन्दोलित हो जाता है ! इन कवियों को मेरा नमस्कार !

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