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Monday, March 14, 2011

दावे ..अपने-अपने - रोशन वर्मा


हुआ जलजला / घिरा अन्धेरा / किसका दावा / कितना सच था ?
किसका क्या था ...../ किसका कितना था...../ धरा रह गया सबका दावा.     - कौशलेन्द्र 

१-
ये घर मेरा है 
ये .......
यहाँ से वहां तक 
कागजात भी हैं मेरे पास 
दिखाऊँ ?

२-
इस घर के 
जालीदार, लोहे के 
बड़े से गेट के भीतर से 
भौंकता है 
एक बड़ा सा 
डरावना सा कुत्ता ........
कोई आना नहीं 
ये घर मेरा है.

३-
इसी घर के 
छज्जों पर ......
रोशनदानों के पीछे ......
बनाती है हर साल 
एक चिड़िया 
अपना घोसला
ये घर मेरा है 
न जाने कितनी पीढियां जन्मीं हैं 
इसी घर में 
कोई और कैसे रह सकता है 
मेरे पुश्तैनी घर में ?

४-
साँप और चूहे
छछूंदर और तिलचट्टे 
छिपकली और बिच्छू 
चीटियाँ और दीमक 
आँगन में उगे अमरूद 
पौधे और फूल
कोई किराए से नहीं रहता यहाँ 
सबका मालिकाना हक़ है 
यहाँ तक कि अदृश्य कीटों का भी
जन गणना में किसे बताऊँ इसका मालिक ?
कोई एक हो तो बताऊँ !

५-.
चले आते हैं सब 
बारी-बारी
जो आता है एक बार 
फिर नहीं जाता 
फिर आयेगा कोई..... 
अब ....... ये घर मेरा है
आखिर किसका है ये घर 
कब तक और कितना 
जापान में आये सूनामी ने 
बाध्य कर दिया है मुझे  
यह सोचने के लिए 
कि आखिर किसका है ये घर 
कब तक .......और कितना ......!
दावा किसका सच है 
और कितना ! 



3 comments:

  1. मेरा-मेरा-मेरा .....लगता है हम सब एक बहुत बड़े भ्रम में जी रहे हैं ....जापान में आये सूनामी ने फिर पूछा है लोगों से ......किसका क्या ? बड़े-बड़े कुबेर आज छत और रोटी के लिए मोहताज़ हो गए हैं जापान में ....संसार की निस्सारता को प्रत्यक्ष दिखा देती है प्रकृति ....पर हम खुद उससे प्रत्यक्ष नहीं होना चाहते ...कितनी विडम्बना है !

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  2. पांचों दावों के माध्यम से यथार्थ का सुन्दर वैचारिक प्रतुतिकरण...
    बधाई...

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  3. रोशन साहब की ये क्षणिकायें या कुछ और हों तो भेजिएगा सरस्वती सुमन पत्रिका के लिए ...परिचय व् तस्वीर के साथ ....

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