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Wednesday, December 31, 2008

“आज की अभिव्‍यक्ति” - छोटे गाँव में एक बड़ी शुरूआत


इसकी शुरूआत होती है 31 अक्‍टूबर सन 2008 को। कौशलेंद्र जी ने प्रस्‍ताव रखा कि

“आज की अभिव्‍यक्ति” के माध्‍यम से संस्‍था को मुखरित करने के लिए एक श्‍वेत पट रखा जाए ...

जिसमें समसामयिक घटनाओं पर आधारित रचनाएँ/टिप्‍पणियाँ लिखी जाएँ ...

श्‍वेत पट को लोगों के वाचन के लिए टाँगा जाए....

तब से यह श्‍वेत पट निरंतर भानुप्रतापपुर कांकेर छ.ग. के भारतीय स्‍टेट बैंक के समीप रखा जाता है जिस पर अभिव्‍यक्ति के सदस्‍यों की समसामयिक रचनाएँ/ टिप्‍पणियाँ लिखी जाती हैं। प्रति दो/तीन दिनों में रचनाएँ बदल दी जाती हैं।


हमारा प्रयास रहेगा कि आज की अभिव्‍यक्ति के अंतर्गत आने वाली अगली और पिछली रचनाएँ आपके सम्‍मुख प्रस्‍तुत करें....

अभिव्‍यक्ति परिवार की ओर से आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ...

Monday, December 29, 2008

मैं जी रहा बेचकर अंग अपने, ढो रहा जिस्म आधा अभी भी!

इंसान हों, या हों मेमने
आज बाज़ार में
क्या-क्या ना बिके!
खून- गुर्दे बिके, और बिके फेफड़े
क्योंकि देनी है "डाली"
नौकरी के लिए!

मुझसे तो बेहतर हैं
वे मेमने जो बिककर हैं सोये, सदा के लिए
मैं जी रहा
बेचकर अंग अपने,
ढो रहा जिस्म आधा
अभी भी लिए!