विकास के कौटिल्य ने चाहा
कि बेहद ख़ूबसूरत हों फूल
खिलें........
पहले से भी अधिक।
और सचमुच.......... ऐसा हो गया
परंतु
कीमत ले ली इसकी ....
चुरा ली सुगंध.........., पी गया मकरन्द,
घोल दिया विष.........
सारे उपवन में।
कलियाँ
विषकन्या सी खिलकर झूम उठीं
झूम उठे हम भी
बन गए .............विषमानव ।
ऑक्सीटोसिन पोषित सब्जियों के साथ
कीटनाशकों से संरक्षित अनाज की
खाकर रोटी
और पीकर .......नकली दूध
बड़ी निर्ममता से
नपुंसक बन गए .......हम भी।
............इतने नपुंसक
कि खरीदकर खाते हैं विष
और उफ तक नहीं करते।
विषाक्त धरती बांझ होने लगी है...
कैंसर
आमंत्रित अतिथि बन रहे हैं
और हमें गर्व है
कि हम विकसित हो रहे हैं।
bahut badhiya
ReplyDeleteस्वागत है आपका, छत्तीसगढ ब्लागर्स चौपाल में आपका स्वागत है.
ReplyDeleteइतने नपुंसक
ReplyDeleteकि खरीदकर खाते हैं विष
और उफ तक नहीं करते।
लाईनें बहुत अच्छी लगी, अच्छी कविता के लिये धन्यवाद.
सुन्दर कविताअ, आप अपने प्रोफ़ाइल में दर्शन के अतिरिक्त ी कुछ अवश्य लिखे। धन्यवाद
ReplyDeleteजीवन्तता व सार्थकता के प्रतीकों के साथ सुन्दर कविता, जो परिलक्षित कर रही है सत्य को
ReplyDeleteइतने नपुंसक
ReplyDeleteकि खरीदकर खाते हैं विष
और उफ तक नहीं करते।
विषाक्त धरती बांझ होने लगी है...
कैंसर आमंत्रित अतिथि बन रहे हैं
और हमें गर्व है
कि हम विकसित हो रहे हैं।
khandit khandit zindagi aur uske vikshipt udgaar mann par ankit ho gaye ...
rasprabha@gmail.com per is rachna ko parichay aur tasweer ke saath bhejen - vatvriksh ke liye .
http://urvija.parikalpnaa.com/
रश्मि जी !
ReplyDeleteबस्तर की अभिव्यक्ति में आपका हार्दिक स्वागत है
रचना के अवलोकन के लिए धन्यवाद !
वट-वृक्ष के लिए रचना भेजकर हमें प्रसन्नता होगी
कलियाँ
ReplyDeleteविषकन्या सी खिलकर झूम उठीं
झूम गए हम भी
बन गए विषमानव ।
ऑक्सीटोसिन पोषित सब्जियों के साथ
कीटनाशकों से संरक्षित अनाज की रोटी खाकर
और पीकर नकली दूध
बड़ी निर्ममता से नपुंसक बन गए हम भी।
bahut khooh kyaa baat kahi hai. sampreshan ka andaaz bahut saarthak aur sateek.
और हमें गर्व है
ReplyDeleteकि हम विकसित हो रहे हैं।
waah kya likha hai aapne ... bahut khoob
चुरा ली सुगंध, पी गया मकरन्द,
ReplyDeleteघोल दिया विष... सारे उपवन में।
aaj bahut dino baad waqt mila he jraa sa tasaali ke sath.......so sabse pehale....yahaan aa gyi .......:) .....
चुरा ली सुगंध, पी गया मकरन्द,
sach kahun...ab main aapki shaili sikhnaa chaahungi.......kitnii alnkrit hoti he......
susajjit..aapki hindi pr ke grw hota he.....aur main khud bhi aisa hi fel krna chahungi
bahut ..gehan soch me daalne wali kavita
take care
आदरणीय योगेन्द्र जी, युवा संजीव जी, गंभीर पाठक अईय्यर जी, वन्य प्रेमी कृष्ण जी, पन्त जी के स्नेह से भाग्यान्वित रश्मि जी, पारखी डाक्टर तिवारी जी, क्षितिज सी विस्तृत क्षितिजा जी और स्नेह की देवी वीनस जी !
ReplyDeleteइस रचना के वाचन के लिए आप सभी का आभार.यूँ ही स्नेह बनाए रखें ........
काफी धारदार लेखन..बधाई !!
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