एक बहुत पुराना वादा आज से निभाना चाहता हूँ .........बस्तर की अभिव्यक्ति की जब शुरुआत की गयी थी तो यह वादा किया गया था कि श्वेत पट पर लिख कर ज़ो भी रचना भानुप्रतापपुर के चौराहे पर रखी जायेगी उसे आप सबके लिए भी प्रस्तुत किया जाएगा किन्तु कई कारणों से यह संभव नहीं हो सका,फिर जब संभव हुआ तो डायरी ही खो गयी ....अब जब डायरी मिल गयी है तो किंचित सुधार व सम्पादन के साथ आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.
एक निवेदन है .....बस्तर के एक छोटे से गाँव के लोगों नें कविताओं के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है .....अतः साहित्यिक पक्ष पर विशेष ध्यान न देकर उनकी भावनाओं ....व सन्देश की ओर अधिक ध्यान देंगे ......ऐसी अपेक्षा करता हूँ .
तो सुधीजनों ! इस कड़ी में आज प्रस्तुत है दिनांक ०४-११-२००८ को प्रदर्शित ग्राम संबलपुर निवासी श्री गणेश यदु की छत्तीसगढ़ी में लिखी यह रचना..... "गांधी जी तोर देस म ......"
गांधी जी तोर देस म मनखे ह, मनखे मन ल मारत हें /
तीनों बेंदरा मन ह तोर, आँसू ढर-ढर ढारत हें //
जे हे देखइया अंधरा हो के, अनदेखी कर देथें /
बात सुनइया भैरा हो के, अनसूनी कर देथें //
सत्त कहइया मुक्का बनगे, जान-बूझ के नई बोलय /
सत ईमान अउ धरम-करम के , भेद-मरम नई खोलय //
गदहा राजा के घोड़ा बनगे, घोड़ा अवसर ताकत हें /
राजा के घोड़ा रेहंकत हावय, घोड़ा ल दुलत्ती मारत हें //
गांधी जी तोर बेंदरा मन ह, देख दसा ये अकबक खागे /
अपन-अपन ओह हाथ हटाके, दिए ज़ो तोला बचन भुलागे //
गांधी जी तोर देस मं ए , अब कइसनहा दिन आगे /
सत्त-अहिंसा दूर लुकागे, हिंसा ह नाचे आगे //
मनखेपन अउ गाँव-गाँव बर , अब समे जगे के आगे /
आतंकवाद-अलगाववाद संग , अब समे लदे के आगे //
दाई-दीदी करे हमाली, मरद मन सान बघारत हें /
मंद पिए औ नरवा सूते, डौकी मन ल बारत हें //
गांधी जी तोर देस मं ......
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