ग्राम संबलपुर निवासी कुमारी कनुप्रिया वाजपेयी हिन्दी और भारतीय इतिहास में एम्.ए. हैं.प्रस्तुत है उनकी वह रचना ज़ो ०८-११-०८ को चौराहे पर प्रदर्शित की गयी थी -
आज कैसा-कैसा ये मंज़र छाया है,
हर आदमी नें खंज़र पाया है /
कांच का है घर बना,पत्थरों की होने लगी बरसात
कैसे कह दें कुछ नहीं हो रहा है अन्दर भीतरघात /
लोगों के खाने के और दिखाने के दाँत और हैं
इन भीड़ भरी राहों में चलने की बात कुछ और है /
प्रांत-प्रांत, भाषा-भाषा का बखेड़ा है
ये प्रदेश तेरा है ये प्रदेश मेरा है /
शून्य नीरव भावनाओं में स्वप्न भरा आसमान
पीड़ा-व्यथा है विशाल अदना सा बना इंसान /
ये मांगे तो हाँ वो मांगे तो हाँ
भूल गयी मैं तुम न भूलो ये अहसास /
समय का सिक्का चल पड़ा है
हम सब कहने को आज़ाद मगर मन में कारावास /
किसको चुनें किसको छोड़ें, सब ओढ़े हैं नकाब
इस भीड़ भरी खानों में हीरे की है तलाश /
शून्य नीरव भावनाओं में स्वप्न भरा आसमान
ReplyDeleteपीड़ा-व्यथा है विशाल अदना सा बना इंसान
bahutttt hi bhaawpuran अभिव्यक्ति he....aur lekhni bhi kmaaal