कोई और नहीं तुम भोलापन हो / जैसे चुपचाप टपकता महुवा / कभी ओस में कभी धूप में / हरदम भीगे देखा है ....- कौशलेन्द्र
आज हेमेन्द्र साहसी की एक मादक सी कविता ........
आज हेमेन्द्र साहसी की एक मादक सी कविता ........
बांसों के झुरमुट के पीछे
घने साल पेड़ों के नीचे
तीरथगढ़ के फेनिल झरनों में
तुमको इठलाते देखा था /
रीलो की मस्त धुनों पर
मांदर की मंथर थापों पर
गोदने के नीले गहनों में
तुमको बल खाते देखा था /
महुए की मादक महक में
गीत गाती मैना के संग
टोकरी में चार-तेंदू के संग
बस्तरिया हाटों में गुनगुनाते देखा था /
देवारी माटी-तिहार में
घुंघुरू की मधुर झंकार में
घोटुल-मोटियारिन के दुलार में
तुमको शर्माते देखा था /
तुमको शर्माते देखा था /
कोई और नहीं तुम भोलापन हो
ReplyDeleteजैसे चुपचाप टपकता महुवा
कभी ओस में कभी धूप में
हरदम भीगे देखा है ....
हूँ....हूँ.....????
साहसी जी को इस साहस के लिए बधाई .....!!
Divine song ji .....! साहसी जी को आपकी ओर से बधाई पहुंचा दूंगा तब तक मेरी ओर से एक छोटा सा शुक्रिया क़ुबूल फरमाएं ......
ReplyDelete