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Saturday, September 17, 2011

हम तो आदिवासी थे, आदिवासी हैं और आदिवासी रहेंगे.....पद्मश्री डॉ. पुखराज बाफना



जिनके पास कटु सत्य से सामना करने का साहस है...........ऐसे सभी सुधीजन आदर के साथ आमंत्रित हैं -
राजनांदगाँव निवासी बालरोगविशेषज्ञ पद्मश्री डॉ. पुखराज बाफना जी की इस रचना का सामना करने के लिए. विकास के तमाम खोखले दावों ....अनेक योजनाओं .....और  बेशुमार प्रचार के तामझाम से दूर ....प्रस्तुत है बस्तर की हकीकत .......जो दिल और दिमाग दोनों को झकझोरने के लिए काफी है -       डॉक्टर कौशलेन्द्र 

हमारी तहजीब को तुमने विज्ञापनों में उतारा
हमारी नैसर्गिक परम्पराओं ने तुम्हारा मनोरंजन संवारा / 
हमारी संस्कृति, तुम्हारी शादी में नाचती-बजाती है
हमारी जांगरतोड़ मेहनत तुम्हारे आलीशान घरों में कम मजदूरी पाती है /
हमारी कलाकृतियाँ, तुम्हारे ड्राइंग रूम की शोभा बनती हैं
हमारी सल्फी, अब तुम्हारे मेहमानों के लिए भी छनती है /
हमारे लिए नमक भी तुम्हारी राजनीति का सौदा हो गयी 
आदिवासी होने का सर्टिफिकेट मुख्यमंत्री का ओहदा हो गयी /
जंगली उत्पाद तुम्हारे इम्पोर्ट- एक्सपोर्ट के धंधे बन गए 
हमारी बदौलत न जाने कितनों के महल तन गए /
हमारे अर्धनग्न / आधे पहनावे तुम्हारी दर्शनीय वस्तु हो गयी
ओ शहरी जीव! तुमसे मिलकर हमारी तो ओरिजिनलिटी खो गयी /

हमारे पर्वतों, खदानों के लौह अयस्क तुम्हारे उद्योग बन गए
हम भूखे रहे, हमारी जड़ी-बूटियाँ तुम्हारे उत्तम भोग बन गए /
हमारी निः स्वार्थता और भोलेपन का कितना दोहन करोगे ?
क्या अब हमारी लंगोटी का भी चीर हरण करोगे ??
हमारी वेशभूषा पहन कर तुम्हारे नेता तस्वीरें खिंचवाते हैं
बिंदास अल्हड़पन की फोटो काले बाज़ार में बिकवाते हैं /
हमारी संस्कृति को.... सेहत को ....तुमने दूषित किया है
सच मानो तो हमारे शोषण ने तुम्हें पोषित किया है /
नकली आदिवासी का ढोंग करते तुम्हें शर्म नहीं आती ?
अब तो तुम्हारी गंध भी हमारे नथुनों को नहीं भाती /
हम आज भी कुपोषित हैं, शोषित हैं ...पीड़ित हैं 
पर अपनी संस्कृति पर आज भी गर्वित हैं /

हम चुप हैं अपनी पहचान खो जाने के डर से
तुमने कहाँ देखे अभी हमारे टंगिये और फरसे /
हमारे सम्पूर्ण विकास के सारे पैसे बिचौलिए खा जाते हैं
काम हो न हो, पेपरों में आंकड़े आ जाते हैं /
कभी झांको तो सही हमारे बच्चों को टीका लगा या नहीं ?
उनका आवंटित मध्याह्न भोजन उनके अंग लगा या नहीं ??
रक्ताल्प पीड़ित किशोरियाँ कितने अपरिपक्व बच्चे जनती हैं ?
कितने नवजातों की कितनी सालगिरह मनती है ??
तुम्हारे शोधपत्र और आंकड़ों के ज़खीरे हमारा पेट नहीं भरते
तुम्हारी सियासत हमारे नून-तेल-लकड़ी का इंतज़ाम नहीं करते /
अपनी संस्कृति को ज़िंदा रखते हुए बेहतर ज़िन्दगी जी सकें 
ऐसा कुछ कर सकते हो तो बोलो ....?
वरना जैसे कई आये-गए , तुम भी अपने रास्ते हो लो /
जिनके कान हों और जो सुन सकते हों उनसे ही कहेंगे
हम आदिवासी थे, आदिवासी हैं और आदिवासी ही रहेंगे .....

 









14 comments:

  1. पद्मश्री डॉ. पुखराज बाफना जी की उत्कृष्ट रचना के लिए आभार...

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  2. उत्कृष्ट कृति, दुखद है कि यह सब सच है।

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  3. आपके पोस्ट पर आना सार्थक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । सादर।

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  4. बस्तर का यही दर्द मुझे आप लोगो से और भी करीब लाता हैं। बस्तर के इस दर्द को मैं और भी करीब से जानना चाहता हूं। यह छत्तीसगढ़ आदिवासियों का गढ़ और आदिवासी ही हम सबकी जड़ हैं। वो एक वृक्ष के समान हैं और हम सब उनके शाखाए। उनके बिना हमारा अस्तिव नहीं. ऐसे में आज जब वो खुद अपने अस्वित के लड़ता जान पड़ता हैं तब सायद दर्द कुछ इसी तरह बंया होते हैं। आपके ब्लाग पर यह दर्द हर किसी को महसूस हो और यह दर्द दूर यही शुभकामना।

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  5. पाण्डेय जी ! बस्तर के दर्द को और करीब से जानने के लिए बस्तर आपको आदर के साथ आमंत्रित करता है.
    शीघ्र ही राजीव रंजन प्रसाद का उपन्यास "आमचो बस्तर " प्रकाशित होने वाला है. यह मात्र उपन्यास ही नहीं बल्कि उपन्यास के रूप में एक ऐतिहासिक-सामाजिक दस्तावेज़ भी है,

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  6. बेहतरीन बिल्कुल सही कहा/बताया है

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  7. मैं दिनेश पारीक आज पहली बार आपके ब्लॉग पे आया हु और आज ही मुझे अफ़सोस करना पड़ रहा है की मैं पहले क्यूँ नहीं आया पर शायद ये तो इश्वर की लीला है उसने तो समय सीमा निधारित की होगी
    बात यहाँ मैं आपके ब्लॉग की कर रहा हु पर मेरे समझ से परे है की कहा तक इस का विमोचन कर सकू क्यूँ की इसके लिए तो मुझे बहुत दिनों तक लिखना पड़ेगा जो संभव नहीं है हा बार बार आपके ब्लॉग पे पतिकिर्या ही संभव है
    अति सूंदर और उतने सुन्दर से अपने लिखा और सजाया है बस आपसे गुजारिश है की आप मेरे ब्लॉग पे भी आये और मेरे ब्लॉग के सदशय बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
    धन्यवाद
    दिनेश पारीक

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  8. मैं दिनेश पारीक आज पहली बार आपके ब्लॉग पे आया हु और आज ही मुझे अफ़सोस करना पड़ रहा है की मैं पहले क्यूँ नहीं आया पर शायद ये तो इश्वर की लीला है उसने तो समय सीमा निधारित की होगी
    बात यहाँ मैं आपके ब्लॉग की कर रहा हु पर मेरे समझ से परे है की कहा तक इस का विमोचन कर सकू क्यूँ की इसके लिए तो मुझे बहुत दिनों तक लिखना पड़ेगा जो संभव नहीं है हा बार बार आपके ब्लॉग पे पतिकिर्या ही संभव है
    अति सूंदर और उतने सुन्दर से अपने लिखा और सजाया है बस आपसे गुजारिश है की आप मेरे ब्लॉग पे भी आये और मेरे ब्लॉग के सदशय बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
    धन्यवाद
    दिनेश पारीक

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  9. उत्कृष्ट रचना के लिए धन्यवाद|

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  10. बहुत ही सुंदर और विचारोत्तेजक रचना।

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  11. बहुत ही अच्छा लगा इस पोस्ट को पढ़ कर....बेहद उम्दा

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