ज़िंदगी भी क्या-क्या ग़ुल खिलाती है / पल में हंसाती पल में रुलाती है / कभी झरे हैं फूल तो चुनने वाला ही नहीं / कभी खड़े हैं इंतज़ार में तो फूल ही नहीं ........आज प्रस्तुत है एक नवोदित रचनाकार अंकिता दुबे की एक ग़ज़ल - कौशलेन्द्र.
ज़िंदगी की राह में कभी खुशियाँ तो कभी हादसा यहाँ
कभी तन्हाई मिली तो सजी महफ़िल भी यहाँ .
एक राह में सुकूं दिल को तो एक में मिलती है सज़ा
कभी खैरियत-ओ-चैन तो कभी बेबसी यहाँ.
हर सुबह देखे हैं ख़्वाब मेरे अरमानों ने नए
कभी छाँव में चले तो कभी झुलसे हैं धूप में यहाँ .
कई रिश्ते जाने-अनजाने ऐसे भी मिले हमें
छोड़ कर कुछ चलते बने कुछ अभी तक ठहरे हैं यहाँ .
क्या गज़ब का है सफ़र इस ज़िंदगी का
कभी आरज़ू तो कभी इम्तेहां भी यहाँ .
जी लेते हैं कुछ यूँ ही रख के दुश्मनी ज़ज्बात से
मिलती है हिकारत तो कभी रहमत भी यहाँ
कृपया !अपनी बेहतरीन और मूल्यवान टिप्पणियों से मेरे उत्साह वर्धन के
लिए तशरीफ लायें ....मेरे अपने ब्लॉग पर ....पता है -
Quest 4 the life .
कृपया !अपनी बेहतरीन और मूल्यवान टिप्पणियों से मेरे उत्साह वर्धन के
लिए तशरीफ लायें ....मेरे अपने ब्लॉग पर ....पता है -
Quest 4 the life .
एक राह में सुकूं दिल को तो एक में मिलती है सज़ा
ReplyDeleteकभी खैरियत-ओ-चैन तो कभी बेबसी यहाँ.
दर्द से भीगी भीगी सी ग़ज़ल ......!!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteथैंक्स दी ! मैं अंकिता हूँ ...और अंकल के अकाउंट से लिख रही हूँ. यह मेरी पहली ग़ज़ल है जो पोस्ट की गयी है और जिस पर आपका कमेन्ट आया ....इसलिए यह मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. थैंक यूं सो मच ......- अंकिता
ReplyDeleteसुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद ! काजल कुमार जी! अंकिता दुबे का ब्लॉग है -Quest 4 the life
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